मुझे एक बात समझ नही आती की आज कल के बड़े से लेकर छोटे स्कूल का ध्येय क्या है , क्या करना चाहते हैं ,उनके लिए स्टूडेंट्स की अहमियत क्या है वो आज की पीढ़ी के साथ क्या कर रहे हैं, मैं आज कल के जितने भी स्टूडेंट से मिला हूँ ,उनका एक ही कहना है की उनके स्कूल में हर सब्जेक्ट के प्रशन को रटने के लिए कहा जाता है,एग्जाम में रट कर पास हो जाने के लिए कहा जाता है, यहाँ तक की विज्ञानं एवं गणित जैसे विषय को भी, इसे हद्द ही कहेंगे या फिर क्या कहेंगे .?
इन बड़े बड़े स्कूल में पढाई के लिए बहुत मोटी रकम तो वसूली जाती है पर वहां सिर्फ होता है तो व्यवसाय शिक्षा का मगर पढाई नही, ऐसे में अगर ये बच्चे अपने सोच से कुछ एग्जाम में लिख आयें तो उनका मार्कस ही कट लिया जाता है।और तो और बच्चों के पेरेंट्स भी बच्चों को इसी की की सलाह देते हैं की जैसे भी हो % लाओ रट के हो या किसी तरह से, मुझे तो यहाँ तक पता चला है की जो टीचर स्कूल में पढ़ाते हैं वो अपने घर पे कोचिंग भी चलते हैं और जो स्टूडेंट उनके कोचिंग में नही पढ़ते हैं उन स्टूडेंट को मार्कस कम दे दिया जाता है,मजबूरन स्टूडेंट्स को ऐसे कोचिंग में पढना पढता है,
ऐसे में अगर ये कहा जाये जो नारायण मूर्ति जी की चिंता है की IIT में अब इंजिनियर नही पहुच रहे जिनके अन्दर कुछ नया विकसित करने का जज्बा कम और प्लेसमेंट की चिंता ज्यादा रहती है
इसका सबसे बड़ा कारण इन स्टूडेंट का बेस ही ख़राब होना है ,वो स्कूल से ही रट कर के प्रश्नोत्तर करते हैं तो प्रतियोगिता परीक्षा में क्या करेंगे। उनके अन्दर सोच ही विकसित नही होने दिया जाता है, इसे एक तरह से शिक्षा का स्कूल द्वारा भ्रूण हत्या करना ही कहेंगे आज की पीढ़ी को जो सिखाया जाता है वो ही तो वो आगे चल कर करेंगे।इसलिए ही आज ढूँढने पर भी आचे टीचर अवाम फैकल्टी कम ही मिलते हैं।
मैं कल डॉ विक्रम साराभाई के बारे में पढ़ रहा था जिनके कारण आज भारत का अपना स्पेस आर्गेनाईजेशन ISRO है, थुम्बा जैसा नाम है। उनके पिताजी को यहाँ के एजुकेशन सिस्टम पर कतई विश्वास नहीं था इसलिए उन्होंने अपने कैंपस में ही साराभाई के लिए स्कूल खोल दिया जिसमे पढाई इनोवेटिव तरीके से हो सके और आज हम सभी जानते हैं की साराभाई का भारत में विज्ञानं को बढ़ावा देने में क्या योगदान है ,
साराभाई का खुद से ही मानना था की हमारे देश का एजुकेशन सिस्टम सही नही है, एजुकेशन इनोवेटिव एवं प्रैक्टिकल होनी चाहिए थी।
मगर मैं यहाँ ये कहना चाहूँगा की डॉ विक्रम साराभाई के तरह हर स्टूडेंट पर एक स्कूल तो नही हो सकता मगर ये जो एजुकेशन सिस्टम है इसमें अगर स्टूडेंट को शिक्षा देने की थोड़ी भी भावना आ जाये तो इससे बेहतर कुछ भी नही हो सकता।इससे हमारे देश में फिर से वैज्ञानिकों की फसल उग सकती है।
हमारे पेरेंट्स को समझना चाहिए की एजुकेशन बेहतर FACALITY से नही सही मार्ग दर्शन अवाम शिक्षा से मिलती है। जो शायद आज के एजुकेशन को बेचने वाले दुकान में अब कम ही मिलती है।
और ऐसे में हमारे पेरेंट्स अपने बच्चों से साइंटिस्ट बनाने की कामना तो नहीं ही रख सकते।
THANX
इन बड़े बड़े स्कूल में पढाई के लिए बहुत मोटी रकम तो वसूली जाती है पर वहां सिर्फ होता है तो व्यवसाय शिक्षा का मगर पढाई नही, ऐसे में अगर ये बच्चे अपने सोच से कुछ एग्जाम में लिख आयें तो उनका मार्कस ही कट लिया जाता है।और तो और बच्चों के पेरेंट्स भी बच्चों को इसी की की सलाह देते हैं की जैसे भी हो % लाओ रट के हो या किसी तरह से, मुझे तो यहाँ तक पता चला है की जो टीचर स्कूल में पढ़ाते हैं वो अपने घर पे कोचिंग भी चलते हैं और जो स्टूडेंट उनके कोचिंग में नही पढ़ते हैं उन स्टूडेंट को मार्कस कम दे दिया जाता है,मजबूरन स्टूडेंट्स को ऐसे कोचिंग में पढना पढता है,
ऐसे में अगर ये कहा जाये जो नारायण मूर्ति जी की चिंता है की IIT में अब इंजिनियर नही पहुच रहे जिनके अन्दर कुछ नया विकसित करने का जज्बा कम और प्लेसमेंट की चिंता ज्यादा रहती है
इसका सबसे बड़ा कारण इन स्टूडेंट का बेस ही ख़राब होना है ,वो स्कूल से ही रट कर के प्रश्नोत्तर करते हैं तो प्रतियोगिता परीक्षा में क्या करेंगे। उनके अन्दर सोच ही विकसित नही होने दिया जाता है, इसे एक तरह से शिक्षा का स्कूल द्वारा भ्रूण हत्या करना ही कहेंगे आज की पीढ़ी को जो सिखाया जाता है वो ही तो वो आगे चल कर करेंगे।इसलिए ही आज ढूँढने पर भी आचे टीचर अवाम फैकल्टी कम ही मिलते हैं।
मैं कल डॉ विक्रम साराभाई के बारे में पढ़ रहा था जिनके कारण आज भारत का अपना स्पेस आर्गेनाईजेशन ISRO है, थुम्बा जैसा नाम है। उनके पिताजी को यहाँ के एजुकेशन सिस्टम पर कतई विश्वास नहीं था इसलिए उन्होंने अपने कैंपस में ही साराभाई के लिए स्कूल खोल दिया जिसमे पढाई इनोवेटिव तरीके से हो सके और आज हम सभी जानते हैं की साराभाई का भारत में विज्ञानं को बढ़ावा देने में क्या योगदान है ,
साराभाई का खुद से ही मानना था की हमारे देश का एजुकेशन सिस्टम सही नही है, एजुकेशन इनोवेटिव एवं प्रैक्टिकल होनी चाहिए थी।
मगर मैं यहाँ ये कहना चाहूँगा की डॉ विक्रम साराभाई के तरह हर स्टूडेंट पर एक स्कूल तो नही हो सकता मगर ये जो एजुकेशन सिस्टम है इसमें अगर स्टूडेंट को शिक्षा देने की थोड़ी भी भावना आ जाये तो इससे बेहतर कुछ भी नही हो सकता।इससे हमारे देश में फिर से वैज्ञानिकों की फसल उग सकती है।
हमारे पेरेंट्स को समझना चाहिए की एजुकेशन बेहतर FACALITY से नही सही मार्ग दर्शन अवाम शिक्षा से मिलती है। जो शायद आज के एजुकेशन को बेचने वाले दुकान में अब कम ही मिलती है।
और ऐसे में हमारे पेरेंट्स अपने बच्चों से साइंटिस्ट बनाने की कामना तो नहीं ही रख सकते।
THANX